अच्छा श्रोता कैसे बने – लोगों को आकर्षित करने का अचूक मंत्र
आपका पुन हार्दिक स्वागत है। इस बार का लेख है, अच्छा श्रोता कैसे बने? जी हां, हम में से अधिकांश लोग मानते हैं कि वे अच्छे श्रोता हैं। यदि आप अच्छे श्रोता हैं तो मेरी ओर से बधाई स्वीकारें। फिर भी इस विषय पर यह लेख पढ लें। आपको कुछ ना कुछ नया मिलेगा। यदि नहीं जानते हैं, कोई बात नहीं। आपका स्वागत हैं। आप सही स्थान पर है। लीजिये पढ़िये लेख, Be an Exceptional Listener-Details in Hindi.
क्या आप अपने घर का look शानदार चाहते हैं। जरूरी है कि आपके घर में सभी आवश्यक Home & Kitchen Appliances हों। उपकरणों की जानकारी के लिये लेख पढ़ें।
Be an Exceptional Listener-Details in Hindi. आप कहीं इस शानदार कला से वंचित तो नहीं हैं?
इस लेख को निम्न भागों में बांटा गया है-
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अच्छा श्रोता बनने की आवश्यकता
- अच्छे व्यावसायिक संबंधों के लिये
- महान व्यक्तियों को विशेष गुण
- अच्छे श्रोता के अन्य गुण
- सबसे पहले सुनने की कला
- हमारा दैनिक जीवन
अच्छे व्यावसायिक संबंधों के लिये
क्या आप अपने व्यावसाय, नौकरी में अच्छे संबंध चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि सभी आपको पसंद करें? हमेशा आपसे मिलने के लिये आतुर रहें? जरूरी है कि आप अच्छे श्रोता हों। बिना अच्छे श्रोता बने आपकी सफलता पूर्ण तथा स्थाई नहीं होगी।
महान व्यक्तियों को विशेष गुण
मित्रों जितने भी महान वक्ता हैं। उससे भी पहले वे अच्छे श्रोता हैं। क्योंकि हम जानते है कि जितना हम सुनेगें। उतना अधिक ज्ञान प्राप्त होगा। तब वह ज्ञान हमें कीर्ति, प्रतिष्ठा तथा मान सम्मान दिलायेगा।
अच्छे श्रोता के अन्य गुण
अतः लेख में अच्छ श्रोता के 8 गुण स्पष्ट किये गये हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि केवल यह 8 ही अच्छे श्रोता के गुण हैं। और भी हो सकते हैं।
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आपको भी इनके अतिरिक्त कोई और गुण पता होगा। उसे अवश्य शेयर करें।
आप कैसे एक शानदार श्रोता बन सकते हैं? यह कठिन नहीं है। केवल थोडी सी प्रेक्टिस तथा धैर्य से संभव है। लेख में उसी पर चर्चा है।
सबसे पहले सुनने की कला
कुछ लोग अपने आप को अच्छा श्रोता मानते हैं। हो सकता है वे अच्छे श्रोता हों? फिर भी अच्छा श्रोता अपने सहकर्मियों, प्रबंधकों, ग्राहकों को ध्यान से सुनता है। सही मायने में सुनने की कला, अच्छे वक्ता बनने की पहली सीढ़ी है।
हमारा दैनिक जीवन
दैनिक जीवन में हम क्या करते हैं। दिन भर में हम न्यूनतम 2 हजार से 2500 शब्द बोलते हैं। लेकिन सुनते केवल 3, 4 या अधिक से अधिक 5 सौ। फिर हम सोचते हैं कि हम पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। अब आप ही बताईये सुनने एवं कहने में इतना अधिक अंतर होगा तो यह दो तरफा संवाद कैसे हुआ?
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कैसे बने अच्छे श्रोता
आप उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर यह जान गये हैं कि अच्छा श्रोता बनना क्यों जरूरी हैं। लेख के इस भाग में अच्छा श्रोता कैसे बना जाये? इसकी चर्चा हैं। तो मित्रों आइये शुरू करते हैं। यह रहे कमाल के 8 तरीके। यह आपको जीवन में शिखर तक ले जायेगें।
- वक्ता को अपनी बात कहने दें
- सामने वाले को यथोचित सम्मान दें
- प्रोत्साहित करें
- सुनते समय सहानुभूति रखें
- गोपनीयता बनाये रखने का आश्वासन दें
- कोई प्रश्न हो तो बाद में पूछें
- सच्ची सहानुभूति रखें
- सुनने की क्रिया में काम की बात ग्रहण करें
अच्छे श्रोता के उपरोक्त गुणों की विस्तृत जानकारी
1. वक्ता को अपनी बात कहने दें
जी हां मित्रों, हम में से अधिकांश लोग अपनी बात कहने की जल्दी में रहते हैं।
जब वे किसी से मिलते हैं तो औपचारिक वार्तालाप के पश्चात अपनी बात कहने की जल्दी में रहते हैं। आप किसी से मिल रहे हैं। दुआ सलाम के पश्चात उसके हालचाल जानें। उसकी बात सुनें।
यहां सुनने का अर्थ है समग्र रूप से सुनना। बोलने वाले की बात का समर्थन, उसकी तरह देखना तथा अपने हाव भाव व्यक्त करना। यह सुनने की क्रिया में आवश्यक है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपका मित्र कुछ कह रहा है और आप कहीं दूसरी तरफ देख रहे हैं? वह शीघ्र ही समझ जायेगा कि आप उसकी बात में रूचि नहीं ले रहे हैं। ऐसे में आपसे मिलने का उसका उत्साह ठंडा पड़ जायेगा।
अतः ध्यान रखे, जब भी किसी से मिले, वक्ता को अपनी बात कहने दें।
2. सामने वाले को यथोचित सम्मान दें
जी हां, सुनने का अर्थ केवल दिखावा करना नहीं है। हमे चाहिये कि सामने वाले को सम्मान दें।
उसकी बात का समर्थन करते वक्त भी उचित सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करें।
अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध कवि इलियट सुनने की कला के माहिर थे। अमेरिका के महान उपन्यासकार हेनरी जेम्स ने उनके बारे में बहुत कुछ लिखा है। हेनरी जेम्स लिखते हैं कि, इलियट का सुनना केवल मौन नहीं था। वह संपूर्ण मनोयोग से सामने वाले को सुनते थे। बीच बीच में संकेतों के माध्यम से उसकी बात पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते थे। वह सामने वाले को यथोचित सम्मान देते हुये उसकी बात सुनते थे।
मित्रों प्रसिद्ध कवि इलियट के इस गुण ने उन्हें अंग्रेजी साहित्य ही नहीं विश्व में अमर व्यक्तिव बना दिया।
अतः सामने वाले की बात सुनते समय यथाचित सम्मान दें।
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3. प्रोत्साहित करें
जी हां यह बहुत महत्वपूर्ण हैं। सामने वाले व्यक्ति को सुनते समय प्रोत्साहित करें।
तब जब आपकी उसकी बात से सहमत हों। असहमत हों तब भी कम से कम बात तो अवश्य ही सुनें। जब सामने वाला अपनी बात कह रहा हो तब विरोध करना उचित नहीं है।
प्रसिद्ध अमरीकी लेखक डेल कारनेगी अपनी पुस्तक How to win friends and influence people में इसके संबंध में विशेष रूप से लिखा है। वे लिखते है कि, सामने वाले की बातों में दिलचस्पी लें। उससे ऐसे प्रश्न पूछें जिनका जबाव देने में उसे मजा आये। उसके स्वयं के बारे में एवं उसकी उपलब्धियों के बारे में बात करने के लिये उसे प्रोत्साहित करें।
अतः आप भी वही करे जिसे विद्वान उचित मानते हैं। सामने वाले को प्रोत्साहित करें।
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4. सुनते समय सहानुभूति रखें
जब आप किसी को सुन रहे हों तो उचित प्रतिक्रिया दें। जहां आवश्यक हो वहां सहानुभूति रखें।
हर समय खिलखिलाना हंसना उचित नहीं है। उस व्यक्ति की बातों को सुनकर समझे उसके बाद ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करें। यदि कोई बात समझ में नहीं आ रही है तो पुनः पूछें।
अपने अनुभव या विचार अनावश्यक रूप से थोपने का प्रयास ना करें। आप सुन रहें है, सामने वाले को लगना चाहिये। आप उसके सच्चे हितैषी हैं। यह बात उस व्यक्ति के मन में भी हों।
अन्यथा आप सुनकर भी अनसुना कर रहे होगें।
अतः सुनते समय सहानुभूति रखें
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5. गोपनीयता बनाये रखने का आश्वासन दें
मित्रों किसी दूसरे की बातें सुनने के लिये यह बहुत आवश्यक है।
आप जो भी सुन रहे हैं वह गोपनीय रखें।
जब वक्ता की अनुमति हो तब ही उसकी कही गई बातों को दूसरे से शेयर करें।
यह नहीं होना चाहियें कि आपने यहां सुना और तत्काल किसी और से जाकर वही बातें कह दी।
कुछ लोग तो सुनी गई बातों को बढ़ा चढ़ा कर अन्य लोगों में शेयर करते हैं।
ऐसे लोग समाज में कभी भी सम्मान नहीं प्राप्त कर सकते हैं।
इसलिये सुनने की क्रिया में गोपनीयता जरूरी है। इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक बात गोपनीय रखी ही जाये। जिसे बात को गोपनीय रखना है उसे रखें।
यदि कोई बात प्रसारित करने योग्य है तो जरूर प्रसारित करें।
अच्छे श्रोता सामने वाले की बातों को गोपनीय बनाये रखते हैं। जब तक आवश्यक ना हो वे किसी और से इसे शेयर नहीं करते।
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6. कोई प्रश्न हो तो बाद में पूछें
जी आप जब बातें पूरी तरह से सुन लें उसके पश्चात कोई प्रश्न हो तो अवश्य पूछें।
लेकिन प्रश्न सामने वाले की बात से संबंधित होना चाहिये। कहीं ऐसा ना हो कि आप किसी और तरह का प्रश्न पूछ रहे हों। जिसका वक्ता द्वारा कहीं बातों से कोई संबंध नहीं है। प्रश्न शालीन ढंग से पूछा जाये, वह प्रभावशाली हो। वक्ता को उसका उत्तर देना ही पड़े। ऐसा भी ना लगे कि आप उस पर प्रश्नों की बौझार कर रहे हैं।
उस सामने वाले की बातों से संबंधित बहुत जरूरी एक या दो ही प्रश्न पूछें बस। इससे अधिक नहीं ।
इसलिये यदि आपका कोई प्रश्न हो तो बाद में ही पूछें।
7. सच्ची सहानुभूति रखें
सामने वाले में सच्ची सहानुभूति रखें। उसकी बातों तथा विचारों के प्रति सहानुभूति रखना अति आवश्यक है।
फिर भले ही आप उसकी बातों से सहमत ना हों। आपके विचार यदि नहीं भी मिलते हैं तब भी।
आखिर कुछ ना कुछ तो ऐसा होगा जो सहानुभूति रखने लायक होगा। आपके सामने अपनी बातें रखने वाला आपसे छोटा है तो वह दया का पात्र भी होगा। उसे आपका स्नेह भी मिलना चाहिये। आपसे बड़ा है तो फिर तो आपका दायित्व और भी बढ़ जाता है।
इसलिये वक्ता के प्रति सच्ची सहानुभूति रखें।
8. सुनने की क्रिया में काम की बात ग्रहण करें
आप जिसे सुन रहे हैं, क्या वह आप से बड़ा है।
अनुभव, गुण तथा ज्ञान में। फिर भले ही उसकी उम्र कुछ भी हों।
उसने कुछ ना कुछ ऐसा कहा होगा जो आपके लिये उपयोगी होगा। सामने वाले की बात से तारतम्य बैठा लेना बहुत अच्छा होता है। जो लोग यह कर पाते हैं वे भविष्य में अच्छे वक्ता बनते हैं।
हम जानते है कि प्रत्येक व्यक्ति में ऐसा कुछ होता है जिसे सीखा जा सकता है। जिसका अनुकरण किया जा सकता है।
अतः सुनने की क्रिया में काम की बात ग्रहण करें
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निष्कर्ष
लेख में आपको अच्छे श्रोता की विशेषताएं बताई गई है। आपमें यह 8 विशेषताएं होना ही चाहिये। यदि नहीं है तो इसे विकसित करना कठिन नहीं है। आप थोड़े से प्रयास से इसे डेवलप कर सकते हैं।
आपको सामने वाले की मानसिकता को समझना है। उसके हावभाव, आचार विचार तथा अन्य गतिविधियां जानकार व्याव्हार करना है। इन 8 विशेषताओं के द्वारा आपकी अच्छी पहचान बन जायेगी।
लोग आपसे मिलना पसंद करेगें। आपकी सराहना होगी। क्यों ना आज से ही शुरूआत करें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
विशेष: इस लेख के लिये किसी तरह का पारिश्रमिक नहीं लिया गया है।
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